शक्तिपीठों की यात्रा के भाग 5 में कालीघाट मंदिर:षष्ठी से दशमी तक मंदिर में होंगे विशेष आयोजन, देवी को मांस-मछली का भी लगेगा भोग

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शक्तिपीठों की यात्रा के पांचवें पड़ाव में आज (19 अक्टूबर) हम आए हैं कोलकाता के कालीघाट मंदिर। यहां देवी सती की दस महाविद्याओं में पहली महाविद्या काली की पूजा की जाती है। कालीधाम में देवी काली प्रचंड यानी उग्र रूप में दर्शन देती हैं। देवी की प्रतिमा काले पत्थर से बनी हुई है। इस मूर्ति में देवी की तीन बड़ी-बड़ी आंखें दिखाई दे रही हैं, सुनहरी लंबी जीभ बाहर निकली हुई है। मां काली की चारों भुजाएं सोने की हैं। इस शक्तिपीठ में देवी सती के पैर की उंगलियां गिरी थीं।

मैं इस वक्त ‘जॉय ऑफ सिटी’ कोलकाता के शक्ति केंद्र कालीघाट मंदिर में हूं। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। नवरात्रि होने से मंदिर में भक्तों की भीड़ है। फिलहाल मंदिर का जीर्णोद्धार भी हो रहा है। मंदिर के अंदर की दुकानों को बाहर स्थानांतरित किया जा रहा है, नई दुकानें बनाई जा रही हैं।

कालीघाट स्काईवॉक का निर्माण कार्य भी चल रहा है और एक साल में इसके पूरा होने की उम्मीद है। इन निर्माण कार्यों की वजह से भक्तों को मंदिर में प्रवेश करने में दिक्कतें भी आ रही हैं।

गर्भगृह में पुजारियों के मंत्रोच्चार, शंख, घंटियों की गूंजती आवाजें और धूप की सुगंध फैली हुई है। नवरात्रि में मां काली को समर्पित इस मंदिर में सिर्फ देवी के दुर्गा स्वरूप की पूजा होती है। नवरात्रि की षष्ठी तिथि तक मां को चावल, केला, मिठाई और जल का नेवैद्य चढ़ता है।

षष्ठी से दशमी तक मंदिर में होंगे विशेष आयोजन

  • मंदिर के पुजारी बताते हैं कि षष्ठी से दशमी तक मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। इस दौरान सिर्फ मानव कल्याण के लिए ‘कल्याण पूजा’ होती है। 3 घंटे चलने वाली ये पूजा सप्तमी, अष्टमी और नवमी की रात 2 बजे होगी। षष्ठी को बोधन पूजा होती है।
  • सप्तमी की सुबह कोला बौ (केले के पत्ते) को मूर्ति के पास रखा जाएगा। इसे गणपति की पत्नी के रूप में पूजा जाएगा। इस दौरान पुजारी दीप जलाने में सावधानी बरतते है। यदि जलाए गए दीपक बुझ जाते है तो अपशकुन माना जाता है।
  • अष्टमी-नवमी के बीच संधि पूजा होगी। नवमी पूजा के बाद मंदिर में अनुष्ठान के रूप में 3 बकरियों की बलि दी जाएगी और ये महाप्रसाद भक्तों को भी बांटा जाएगा।
  • बलि नट मंदिर के पास दो बलि वेदियों पर दी जाएगी, जिन्हें हरि-कथा के नाम से जाना जाता है।
  • नवरात्रि के आखिरी दिन परिसर में स्थित राधा-कृष्ण मंदिर से राधा-कृष्ण को लाया जाएगा और विशेष पूजा की जाएगी। एक अलग रसोई में राधा-कृष्ण के लिए शाकाहारी भोग बनाएंगे। भोग के बाद गर्भगृह में रखे कोला बौ को विसर्जित किया जाएगा। फिर समापन आरती होगी।
  • दशमी की दोपहर 12 बजे से शाम पांच बजे तक गर्भगृह में महिलाएं सिंदूर खेला खेलेंगी, इस दौरान पुरुषों के लिए मंदिर में प्रवेश वर्जित रहेगा।

200 साल पुराना है वर्तमान मंदिर

मंदिर की मौजूदा संरचना 200 वर्ष पुरानी है। इससे पहले भी मंदिर का जिक्र ग्रंथों में मिलता है। 15वीं और 17वीं सदी के गुप्त वंश के सिक्के मंदिर की प्राचीनता को बताते हैं।

दिन में चार बार होती है आरती

  • मंदिर में चार प्रहर आरती होती है। पूजा की शुरुआत सुबह मंगला आरती से होती है।
  • फिर दोपहर में अन्न भोग चढ़ाया जाता है। इसमें पुलाव, चावल, सब्जी, मच्छी, मांस, चटनी, खीर का भोग लगता है।
  • शाम को पूरी, हलवा, मिठाई, दही का शीतल भोग चढ़ाया जाता है।
  • दिन के अंत में शयन आरती के वक्त मां को राज भोग परोसा जाता है।